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लेखनी कहानी -31-Aug-2023 "ख़ुशियां"

    ख़ुशियाँ

बहारें ही बहारें है खिले है फूल ख़ुशियों के। 

छेड़ो मृदंग ज़रा लोगों ख़ुशियों ने द्वार  खोलें है।। 


पूर्णिमा का चांद है लोगों तारों की बारात सजी है। 

झिलमिला रही है ख़ुशियां तराने हर जुबां ने छेड़े हैं।। 


खुशबू है हर तरफ फैली फूलों की चादर सी बिछ गई है। 

महक उठी है अजब ख़ुशियां कांटे वहाँ से बचकर निकले है।। 


नहीं कोई शिकायत है मुझें कल के बीते ज़माने से। 

आज ख़ुशियां खड़ी हो कर मेरे दर पे ज़लवा बिख़रे है।। 


मेरे सपने मेरे अपने मेरे यारों ने ऐसे रंग सजाएं हैं। 

नज़ारा देख कर सारा ख़ुशियों ने गले में हाथ डाले है।। 


मधु गुप्ता "अपराजिता"

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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4 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव

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बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपका 🙏🙏

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Zakirhusain Abbas Chougule

31-Aug-2023 06:33 PM

Nice

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Thank u so much 🙏🙏

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